Wednesday, April 29, 2015

International Conference - Bhopal - Value Based Living -2015







अस्तित्व में स्थिति और गति का सहअस्तित्व है: डॉ. सुरेन्द्र पाठक

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अस्तित्व में स्थिति और गति का सहअस्तित्व है: डॉ. सुरेन्द्र पाठक

जीवन विद्या के शोध निदेशक डॉ. सुरेन्द्र पाठक से dr. anand prakash shukl से बातचीत 

surendraप्रोफेसर डॉ. सुरेन्द्र पाठक विगत दो दशक से शांति सद्भाव और मानवीय मूल्यों पर शोध कार्य कर रहे हैं। आपके शोध का आधार मप्र के अमरकंटक  में संत एवं दार्शनिक ए. नागराज का मध्यस्थ दर्शन सह अस्तित्व वाद है। वर्तमान में डॉ. पाठक आईएएसई मान्य विश्वविद्यालय राजस्थान में मूल्य शिक्षा के प्रोफेसर विवि के शोध निर्देशक एवं अधिष्ठाता कला एवं सामाजिक अध्ययन है। मध्यस्थ दर्शन-सहअस्तित्व वाद के दर्शन एवं वाद के आधार पर आईएएसई विश्वविद्यालय गांधी विद्या मंदिर ने राजस्थान एक बृहद शोध की योजना ऐक्जिस्टेंशियल हार्मोनी अस्तित्वीय समरसता प्रारम्भ की उसके अंतर्गत छह शोध चेयर की स्थापना दो वर्ष पूर्व की गई थी जिसमें लगभग 45 शोध परियोजनाओं का संचालन किया गया। डॉ. पाठक इस परियोजना के निदेशक हैं। प्रस्तुत है कुछ अंश। 
मूल्य आधारित जीवन अंतरराष्ट्रीय परिसंवाद में आकर आपको कैसा लगा? 
उद्घाटन सत्र में प्रदेश के मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान ने आगामी कुंभ को लेकर जिस वैचारिक अभियान के प्रारंभ किया है वह अनेक दृष्टि से अद्भुत एवं दीर्घपरिणाम उत्पन्न करने वाला है। मुझे विश्वास है कि इस परिसंवाद से निश्चित ही सकारात्मक निष्कर्ष निकलेंगे और इसका प्रभाव  प्रदेश की राजनीति, प्रशासन, शिक्षा एवं जहां के जनजीवन पर दिख सकता है। उनका वक्तव्य गहन आध्यात्मिक दूर दृष्टि सम्मान और भारतीय परंपराओं के प्रति गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
. यहां संपन्न हुए विमर्श में भागीदार रहे, कैसा अनुभव रहा ? 
प्रयास में इमानदारी दिखती है विमर्श की दिशा भी सही दिखती है विमर्श में मुद्दों का चयन समय की आवश्यकता के अनुसार है। सार्वभौमिक मूल्य सह-अस्तित्व एवं सर्वजनिक जीवन की मूल्य निष्ठा को पहचानने का प्रयास है। ऐसे विमर्श निश्चित ही सार्थक चिंतन को बढ़ावा देते हैं।
. ऐसा तो नहीं है कि यह सरकार का प्रचार अभियान हो, इस परिसंवाद में अकादमिकता कम हो? 
मुझे ऐसा नहीं लगता, विद्वानों का चयन और मुद्दों की व्यापकता एवं विमर्श की गहनता दर्शाती है कि यह प्रचार के साथ गहन-मंथन, भारतीय परंपराओं के मूल तत्वों की पहचान एवं समय के अनुकूल दिशाओं और कार्यक्रमों को पहचानने का प्रयास है जो बाजार एवं भौतिकता से दूर आत्मावलोकन का प्रयास है। आयोजकों को यह ध्यान रखना होगा कि निष्कर्षों का आधार सार्वभौमिकता और सर्वशुभ की कसौटी पर कसा जाना चाहिए।
. मध्यप्रदेश में अमरकंटक से मूल्य शिक्षा की एक धारा बह रही है, आप इसे कैसे देखते हैं? 
ए. नागराज ने आदर्शवाद और भौतिकवाद के विकल्प में मानव केंद्रित चिंतन-मध्यस्थ दर्शन-सहअस्तित्व वाद को प्रतिपादित किया है इसकी अनेक विशेषताएं है पूर्व में ईश्वर केंद्रित और पदार्थ केंद्रित वाद-विचार रहे है, मानव केंद्रित चिंतन-दर्शन को यह नया प्रस्ताव मानव जाति के समक्ष प्रस्तुत हुआ है। उन्होंने पूर्व चिंतन को अभिव्यक्त किया है जो चार दर्शन, तीन वाद, तीनशास्त्र और मानवीय संविधान के रूप में प्रकाशित हो चुका है। सभी को आधार बनाकर देश की 30-40 विश्वविद्यालय मूल्यशिक्षा के पाठ्यक्रम संचालित कर रहे हैं। धारे-धीरे दक्षिण एशियाई देशों में भी इसकी भनक पहुंची है।
. भारत जैसे सेक्यूलनर देश में शिक्षाजगत में इसकी स्वीकृति कैसे बनी? 
प्रो. गणेश बागडिय़ा, प्रो. आर.आर. गौड़, प्रो. राजीव सांगल, प्रो. प्रदीप राम चरल्लम, प्रो. रजनीश अरोरा, Ÿरामनर सिम्हन, सोमदेव त्यागी जैसे अनेक विद्वान विगत-विगत बीस वर्षों से इसके लिए गहन प्रयास किये है। दिल्ली आईआईटी, कानपुर आईआईटी आईआईआईटी हैदराबाद, बनारस आईआईटी, पंजाब टेक्रीकल यूनीवर्सिटी और रायल युनिवर्सिटी ऑफ भूटान के कुलपतियों, निदेशकों, प्रोफेसरों के संयुक्त प्रयास से यह संभव हुआ है। इन्होंने मूल्य शिक्षा की बस्तु के चयन में सार्वभौतिकता तर्कशीलता के सथ इसे मानवीयता से जोड़ा है। दूसरी विषयवस्तु ऐसी है जसे सभी स्वयं के जीवन में करके देश सकते हैं्र। इसकों धर्म पुस्तकों के संदर्भों से भी मुक्त रखा है। विषयवस्तु चयन का आधार अस्तित्व एवं प्रकृति के अवस्थित सह-अस्तित्व को बनाया गया है।
. भौतिक वादी शिक्षा और नागराज जी के वैकल्पिक प्रस्ताव को आप कैसे देखते है? 
अकादमिकत्व शैक्षिक वाद को समझने के समाज के संवाद व विचार से दर्श परंपराओं के उद्भव और दर्शन से सिद्धातों की यात्रा और सिद्धातों से शिक्षा वस्तु का निधारण और पाठ्यक्रम निर्माण प्रक्रिया तक के अंतरसंबंध को समग्रता एवं व्यायकता में देखना होता है। विचार के पूर्व कुछ मान्यताएं, परिकल्पनाएं संकल्पनाएं और एक तर्क प्रणाली होती है। भौतिकवाद की मान्यता संघर्ष-द्वंद्व केंद्रित है भौतिकवाद पदार्थ में आंतरिक और द्वंद्व केंद्रित दर्शनवाद शास्त्र, शिद्धांत एवं शिक्षा की वस्तु विकसित हुई है। इसने मानव समाज में संघर्ष/द्वंद्व को राज्य, समाज, शिक्षा और सार्वजनिक जीवन में स्थापित कर दिया है।
. इससे निकले का रास्ता क्या है? 
दरअसल भारतीय अध्ययन परंपराओं में और नवीन शोधों से ऐसे संकेत मिलते है कि अस्तित्व और प्रकृति में न तो आंतरिक द्वंद्व है और न ही बाह संघर्ष है । ब्रम्हाण्ड से लेकर अखिल ब्राहंण्डतक सभी कुछ व्यवस्था में हार्माेनी है।
. व्यवस्था का क्या मतलब है? 
अस्तित्व में प्रत्येक एक इकाई स्वयं में नियंत्रण, संतुलन और निश्चित आचरण के सथ नित्य क्रियाशील है। समग्र व्यवस्था में भागीदारी है। ब्रहण्ड आने सभी अंशों के साथ नियंत्रण, संतुलन, सहित निश्चित आचरण में है। मानव समाज निश्चित आचरण में जीेने का विचाराकांक्षी है, इसी आशंकावश मानव समाज-राज्य-धर्म और विधि व्यवस्था में निश्चित आचरण में जीना चाहता है। व्यवस्था में सुख और अव्यवस्था में दुख है।  मध्यस्थ दर्शन को रहस्यवाद से मुक्त कर दिया है। मानव के निश्चित लक्ष्य और निश्चित आचरण की पहचान की है। अनुभव की अनिर्वचनीयता को भाषा प्रदान कर दी है और अमूर्त कही जा रही चेतना को सभ्यता-संस्कृति विधि और व्यवस्था तक के अनुक्रम और अंतरबिंध की व्याख्या प्रस्तुतकर दी है।
. सह-अस्तित्व का क्या अर्थ है? 
अस्तित्व में स्थिति और गति का सहअस्तित्व है। क्रिया शीलता- क्रियाशून्यता के साथ है। चेतना का चैतन्य के साथ। प्रकृति का व्यापक के साथ सह-अस्तित्व है।  नियंत्रण, संतुलन, व्यवस्था, ज्ञान, विश्वास न्याय आदि स्थितियां मानव के कार्य-व्यवहार और आचरण रूपी गति के साथ है। अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था में जीना भारत में वैदिक काल से आकांक्षा अपेक्षा के रूप में बना है। मानव परम्परा में अन्य परंपराओं में भी दिखता है।
. नागराज जी के मानववाद और पश्चिम के मानव में क्या अंतर है? 
पश्चिम में क्लासिक स्यूमेनिंज्म साइंटिफिक ह्यूमेंनिज्म और सेकुलर हूमेनिज्म के रूप में मानववाद का विकास हुआ है । इसने कला-साहित्य विज्ञान और राज्य की विधि सम्प्रदाय धर्म की समा से बाहर निकलकर संपूर्ण समाज में व्याप्त हो गया, हम कह सकते  हैं मानव समाज की संपदा बन कई, लेकिन मानव के के सार्वभौगिक निश्चित आचरण, सार्वमानव के लिए सार्वभौम आचार संहित और मानव के संविधान की पहचान नागराज जी के मध्यास्थ दर्शन-सहअस्तित्ववाद से संभव हुई है। अब इसको लोक व्यापीकरण होना है। जो पश्चिम के मानववाद से नहीं निकला था।
. आईएएसई मान्य विश्वविद्यालय में अस्तित्वीय समरसता के शोध में आने क्या किया है? 
भौतिकवाद में यह परिकल्पना है या पूर्व मान्यता है कि अस्तित्व में पदार्थ के मूल द्वंद/ संघर्ष है हमने यह परिकल्पना शोध के लिए ली कि परमाणु, वनस्पति एवं ग्रह, गोल नक्षत्र आदि सभी स्वयं में व्यवस्था है और समग्र व्यवस्था में भागीदार है। संस्था ने इसके लिए छह 5शोध चेयर स्थापित की और 45 शोध परियोजनाओं का संचालन विगत दो वर्षांे में किया है। प्रथम चरण का शोध अभी प्रारंभ होना है विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों के लगभग दौ सौ प्रोफेसर इस परियोजना के लिए कार्य कर रहे है।
. प्रदेश में मूल्य आधारित जीवन परिसंवाद की श्रंखला में किन बांतों पर ध्यान रखना चाहिए? 
जब मूल्य आधारित जीवन की बात हो तो उसे समुदाय की सभी में रखकर व्याख्यांइत नहीं किया जा सकता जीवन और मूल्य तो सर्वमानव का सत्य है।  संप्रदाय की सीमा में परिसंवाद नहीं होना चाहिए, समुदाय के आधार पर सीमा और स्वयं श्रेष्ठता का अहंकार ही समुदाय जाति और धर्म के संघर्ष का कारण रहा है, दूसरी बात है कि व्यक्तिवाद और व्यक्ति केंद्रित मूल्य निष्ठा के प्रयासों से बचाना चाहिए मूल्य अस्तित्व और मानव परंपरा में स्वयं स्फूर्त प्रकरण है । यदि व्यक्ति चरित विम्ब और कथाओं के आख्यानों के आधार पर मूल्यों के निर्धारण, मूल्यों के निर्माण के प्रयास होंगे वह अंतत: व्यक्तिवाद और व्यक्तिवादी व्यवस्था की ओर ही जाएगा। न्याय, व्यवस्था संबंध आधारित मानव परंपरा का सत्य है। इस सर्व मानव में सार्वभौमिकता के रूप में पहचानने से मुक्त होकर न्याय, व्यवस्था और सार्वभौमिक की सार्वमानव की आचार संहिता विधि पहचान के रूप में मूल्रू की पहचना अस्तित्व प्रकृति और मानव परंपरा में कर पायेगा।
. भारतीय परंपरा में ए नागराज का क्या योगदान है? 
श्री नागराज वेदमूर्ति परिवार से उनके मन में वेदान्त को लेकर कुछ शंकाएं थी, उसके लिए उन्होंने आगम तंत्रोवासना विधि से समाधि-संयम की साधना की आकाश तत्व पर संयम करने से उन्हें ज्ञान उपलब्ध हुआ। उन्होंने वेदांत के अनिर्वचनीयता को भाषा प्रदान की संयमकाल के उनके अनुभवों को व्यक्त करने के लिए उन्होंने परिभाषा संहिता तैयार की जिसमें 4500 हिन्दी के शब्दों को परिभाषित किया। इसके उपरांत चार दर्शन, तीनवाद, तीन शास्त्र और मानवीय संविधान के रूप अभिव्यक्त मध्यस्थदर्शन संस्कृति-सभ्यता सूत्र, अखण्ड समाज सूत्र और सार्वभौम व्यवस्था  सूत्रों और उनके अनुक्रम की स्परूर एवं सटीक व्यख्या प्रस्तुत की है। उनके पूरे अनुसंधान में ज्ञान, विवेक और विज्ञान के अमूर्त पक्ष भी मूर्त हो गए है। उन्होंने जो अनुभव किया लिखा और कहा उसमें वे जीकर प्रमाणित करने में सफल रहे। यह अद्भुत धारणा मानव जाति के कल्याणार्थ अस्तित्व सहज विधि से श्री नागराज के माध्यम से स्वयंस्र्फत प्रणाली से प्रस्फुरित हुआ है। श्री नागराज ने इसके लोक व्यापीकरण के लिए जीवन विद्या योजना, चेतना विकास मल्य शिक्षा मानवीय शिक्षा संस्कार योजना और परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था योजना की प्रस्तुत की है। देश एव विदेश में इनपर कार्य चल रहा है।
श्री नागराज ने दर्शन के रहस्य को उजाकर कर हमे रहस्यवाद से मुक्त करने पर सफलता प्रदान की और उसे जीने लायक तथा व्यवस्था में प्रमाणित करने के निश्चित आचरण की सूत्र व्यवस्था एवं मानवीय आचार संहिता को प्रस्तुत किया है। उन्होंने यह सूत्र अस्तित्वमूलक विधि से किया है । श्री नागराज ने बेद,उपरिषद, गीता के संदर्भों के विना ही अस्तित्व के अध्ययन के आधार पर सफलता प्राप्त की है। जिसे अध्ययन विधि से समझा व अनुभव किया जा सकता है। 96 वर्ष की आयू होते हुए आज भी वे नर्मदा के उद्गम अमरकंटक के देश-विदेश के अध्येयताओं का प्रबोधन कर रहे हैं।

Interviews of Dr. Surendra Pathak were published on Aacharan- Sagar and Hidustan Express Bhopal om 26-04-2015



Interviews were published on Aacharan- Sagar and Hidustan Express Bhopal om 26-04-2015 
Surendra Pathak