Saturday, November 2, 2019

अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन - मध्यस्थ दर्शन - सहअस्तित्ववाद
परिभाषा संहिता
अखण्ड           -  व्यापक वस्तु जड़ - चैतन्य प्रकृति में पारगामी व पारदर्शी यही अखण्ड है। जिसका खंड - विखंड, छेद - विच्छेद, संगठन - विघटन  न हो .
-  यही अखण्ड है। सह - अस्तित्व रूपी अस्तित्व में अखण्डता अविभाज्यता स्पष्ट है।
-  तीनों काल में सर्वत्र विद्यमान, भाग - विभाग रहित सहज नित्य वर्तमान वैभव (यही व्यापक है, अखण्ड है)।    
-  मानवीय संस्कृति, सभ्यता, विधि व्यवस्था व आचरण में सामरस्यता - अखण्ड समाज और चारों अवस्था, यथा - पदार्थ - प्राण - जीव और ज्ञानावस्था संपन्न धरती स्वयं अखण्ड। व्यापक अखण्ड है व्यापक वस्तु में हर धरती अखण्ड है। सहअस्तित्व में चार अवस्थाएं इस धरती में प्रकट है।
अनन्त              -  संख्या करण क्रिया  से वस्तुऐं अधिक होना, अग्राह्‌य होना या स्थिति में अगणित रूपात्मक अस्तित्व ।
-  गणितीय प्रक्रिया  में आवश्यकता से अधिक (कम या)  
- धन ऋण की स्थिति में पाया जाने वाला रूपात्मक अस्तित्व - उक्त दोनों स्थितियों में गणना कार्य अपने को अपूर्ण पाता है।
-  मानव में, से, के लिए सहअस्तित्व में समझने, चाहने, करने, उपयोग, सदुपयोग प्रयोजनकारी आवश्यकता से अधिक संख्या मात्रा व गुणों के रूप में वस्तुऐं वर्तमान है।
अनुभव            - चैतन्य इकाई (जीवन) में चारों परिवेशीय शक्तियों को वैभवित करने वाली मध्य में स्थित मध्यांश सहज अक्षय शक्ति और उसका वैभव। क्रिया  प्रक्रिया  
सहज पूर्ण चक्र अनुक्रम से प्राप्त ज्ञान प्रत्यावर्तन विधि से मध्यस्थ सत्ता व्यापक वस्तु सर्वत्र एकसा विद्यमान है यह प्रमाण प्रस्तुत होना अनुभव व समझ है, समझ ही अनुभव है।  

 -      सहअस्तित्व में अस्तित्व सहज परमाणुओं में विकास क्रम, विकास, जीवन, जीवन में जागृतिक्रम - जागृति रासायनिक भौतिक रचना - विरचनाओं सहज यथार्थता वास्तविकता व सत्यता को जानने - मानने की क्रिया । जीवन तृप्ति सम्पन्न होने वाली क्रिया  अनुभव क्रिया  है। व्यापक वस्तु जड़ - चैतन्य प्रकृति में पारगामी है यह मानव परम्परा में ज्ञान प्रमाण व विवेक रूप में प्रस्तुत होना अनुभव है।   -     प्रत्येक मनुष्य में संचेतना पूर्णता सहज अर्थ में जानने - मानने, पहचानने और निर्वाह करने के रूप में क्रिया रत है। पहचानने व निर्वाह करने की क्रिया  जड़ प्रकृति में भी प्रमाणित है। मनुष्य में ही जानने और मानने का वैभव तृप्ति के रूप में है। सपूर्ण संबंधों और उसमें निहित मूल्यों को पहचानने व निर्वाह करने की अभिव्यक्ति, संप्रेषणा व प्रकाशन क्रिया। व्यापक वस्तु हर परस्परता में पारदर्शी है यह मानव परम्परा में भी प्रमाणित होना अनुभव है।
अवधारणा       -  वस्तु स्थिति सत्य, वस्तुगत सत्य, स्थिति सत्य - सत्य बोध सहज यथावत्‌ जानने मानने की बोध क्रिया ।
                      -  बुद्धि में होने वाले बोध ही अवधारणा है जो मन, वृत्ति,चित्त में भास, आभास और साक्षात्कार से अधिक स्थिर होते हैं।
                       -  न्यायपूर्ण व्यवहार, धर्मपूर्वक विचार व सत्य सहज अनुभूति (बोध) ही अवधारणाएं हैं।
अनन्यता          - निभ्रम ज्ञान की निरंतरता। -  परस्पर एकात्मता।  -  मनुष्य की परस्परता में पूरक क्रिया  कलाप प्रामाणिकता व समाधान में निरंतरता। अविकसित के विकास में सहायक क्रिया । सामरस्यता पूर्ण सह - अस्तित्व और उसकी निरंतरता।
अर्थ                  -  क्रिया (यें) शब्दार्थ  -  अस्तित्व में वस्तु व क्रिया  का स्वरूप इंगित होना (रूप, गुण, स्वभाव, धर्म, स्थिति, गति, देश, दिशा, काल, नियम, नियंत्रण,     
            संतुलन, प्रत्यावर्तन - आवर्तन)।      -  जागृति क्रम में न्याय दृष्टि की पहचान।

                        -  जागृति पूर्वक तन, मन व धन सहज पहचान व उनकी अविभाज्य वर्तमान कार्य - व्यवहार में समाधान रूपी फल - परिणाम सहज पहचान।
अंश                  -  प्रत्येक छोटे से छोटे या बड़े से बड़े इकाई के गठन में पाये जाने वाले समस्त समान रूप, गुण, स्वभाव वाले इकाईयाँ अंश कहलाती है। परमाणु के गठन में पाये जाने वाले समस्त 'कण' परमाणु अंश कहलाते हैं, अणु के संगठन में परमाणु अणु अंश कहलाते हैं।   
-  अंश, इकाई के गठन के संदर्भ में समान है, जबकि भाग, विभाग व अंग पिंड व शरीर के संदर्भ में भिन्नता पायी जाती है जैसे शरीर के विभिन्न अंग - परंतु अंश के रूप में कोशिकाओं का समान पाया जाना।
                        -  मानव शरीर में पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ पाँच कर्मेन्द्रियाँ।
अंकुर                           -  बीज से वृक्ष होने की ओर आरंभिक संकेत - स्तुषी बीज से वृक्ष होने का आरंभिक प्रमाण।       
-  बीज से वृक्ष होने सहज प्रवृति प्रकाशन।
                        -  योग पाकर विपुल विस्तार होने योग्य स्पंदनशील प्राणियों (वृक्षों) का संक्षिप्त गठन, प्राण कोषाओं सहज सिमलित रचनारंभण क्रिया ।
अकर्तव्य          -  प्रत्येक स्तर पर स्थापित संबंध एवं सम्पर्क में निहित मूल्य, मानवीयतापूर्ण आशा व प्रत्याशा का निर्वाह न करना अथवा अमानवीयतापूर्वक आचरण व व्यवहार करना।
अकाल             - ऋतु असंतुलन पीड़ा, समस्या।
अकर्मणत्व       -  कर्म से मुक्ति पाने का प्रयास (आलस्य और प्रमाद)।
अक्रूर                           -  शाकाहारी शरीर रचना और शाकाहारी जीव व मानव।
अंगहार            -  भाषा, भाव, भंगिमा, मुद्रा, अंगहार सहज संयुक्तप्रकाशन।
अंगीकार          - स्वीकारा समझा हुआ।  -  स्वीकारा हुआ  -  प्रकाशित होने के पक्ष में - सुना स्वीकार हुआ।
अंतर्राष्ट्र           -  पृथ्वी सहज सपूर्ण राष्ट्र की साम्य परस्परता।
अंतर्राष्ट्रीयता की अखंडता  -  मानवीय संस्कृति, शिक्षा, संस्कार, सभ्यता, विधि, व्यवस्था सहज एकात्मकता।
अचेतन            -  संवेदनाओं को प्रकाशित करने में व्यतिरेक व व्यवधान।   -  कर्म स्वतंत्रता व कल्पनाशील संवेदनाओं को प्रकाशित नहीं कर पाना।
                        -  अस्वस्थता।
अर्चना             -  यथा स्थिति से श्रेष्ठ आचरण के लिए किया गया प्रकाशनसंप्रेषणा (विचार प्रक्रिया ) एवं सहज अभिव्यक्ति पूर्णता के अर्थ में प्रस्तुति।
अण्डज             -  अण्डों से प्रकट होने वाले कीट पतंग पक्षी जीव।
अन्तरद्वंद्व         - आशा विचार इच्छा सहज परस्परता में विरोध।  -  संस्कृति सभ्यता विधि व व्यवस्था में परस्पर विरोध।  -  कायिक वाचिक मानसिक परस्परता में विरोध।
अन्तर नियोजन          -  इकाई द्वारा स्वयं के शक्ति (यों) का विकास/जागृति सहज स्वयं में नियोजन। -  समाधान सहज विचारों का अन्तर नियोजन।
                                    -  अनुभवगामी प्रणाली में निश्चय व निष्ठापूर्वक किया गया अध्ययन।
अन्तर नियामन           - पूर्वानुक्रम संकेत ग्रहण क्षमता (पूर्वानुक्रम=वरीयता क्रम याने आत्मा, बुद्धि, चित्त, वृत्ति, मन)।  -  अनुभवमूलक प्रमाण, स्वीकृतियाँ।
अन्तरनिहित               - समाया हुआ, समा लिया गया, समाया हुआ का     वर्तमान प्रमाण।
अन्तरमुखी                  -  आशा, विचार, इच्छाओं को अनुभव प्रकाश में परिपूर्ण होना।  -  संवेदनाओं को संज्ञानीयता अनुरूप होना। - समाधान सहज रोशनी में समृद्ध होना।
अन्तरंग-व्यवहार        - सहअस्तित्व में अनुभव सहज प्रमाण सम्पन्न बुद्धि में बोध और प्रमाणित करने सहज संकल्प।
- बुद्धि में प्रमाणित करने सहज संकल्प, चित्त में चिंतनपूर्वक साक्षात्कार, वृत्ति में विचार रूप में प्रमाणित होने सूत्र सहित चित्रण क्रिया ।
- अनुभव व प्रमाण सहज चित्रण रूपी न्याय, धर्म, सत्य सहज तुलन विश्लेषण सहित आस्वादन पूर्ण प्रमाणित करने संबंधों का पहचान सहित चयन करना।
अन्तरंग साधन  - सहअस्तित्व में अनुभव प्रमाण सम्पन्नता।  -  समाधान अभय व न्याय सम्पन्नता।   -  वर्तमान में विश्वास।  -  मन, वृत्ति, चित्त, बुद्धि एवं उससे उत्पन्न 
                                    आशा, विचार, इच्छा व संकल्प क्रिया ।

अन्तःकलह  -  भ्रमात्मक कल्पना सोच विचार समस्याओं से पीडि़त रहना।
अन्तःकरण  -   मन, वृत्ति, चित्त, बुद्धि आत्मा सहज क्रिया कलाप।
अन्तःकरण क्रिया  - सहअस्तित्व में अनुभव सम्पन्न जीवन जागृति सहज दृष्टापद क्रिया जागृत जीवन क्रिया ।  -  न्याय-धर्म-सत्य सहज प्रमाण सम्पन्न जीवन क्रिया।
अन्तरण   -       जागृति सहज यथा स्थिति गति। क्रिया  परम्परा।
अन्तरविरोध - कहने में, बोलने में, सोचने में, करने में, होने में अर्थ व प्रयोजन संगत न होना, अपेक्षाओं के विपरीत फल-परिणाम घटित होना।
- जीवन क्रिया ओं सहज परस्परता में विरोध जैसे चयन, विचार, चिंतन व संकल्प में परस्पर विरोध।
अंतर्नाद           - आत्मप्रेरणा अनुभव सूत्र, अंतःकरण की समन्वयता सहज अपेक्षा होना।
अन्तरनिहित -  चैतन्य इकाई में समाहित।  - चैतन्य इकाई में अविभाज्य।  - चैतन्य इकाई में वर्तमानित प्रमाण।
अन्तरवाणी  - अनुभवमूलक वचन, अनुभव सहज स्फूर्ण।
अन्तरसंबंध - लक्ष्य में समानता का कायिक वाचिक मानसिकता में एकरूपता देश कालानुसार प्रक्रिया , फल परिणाम में एकरूपता।
अन्तरिक्ष   - एक ब्रह्मास्नण्डान्तर्गत अवकाश।
अन्यमनस्क - जागृति के लिए आशा किये रहना किन्तु संभव न हो पाना।
अन्तिम प्रक्रिया - फल परिणाम रूप में यथा स्थिति।
अन्तिम संकल्प - दृष्टा पद में जागृति सहज अभिव्यक्ति में, से, के लिए। - अखण्ड समाज सूत्र व्याख्या में, से, के लिए।  - सार्वभौम व्यवस्था सूत्र व्याख्या में, से, के लिए।
अन्योन्याश्रित   - संबंध परस्परता में उपयोगिता पूरकता।
अन्वेषण          - स्वयं को पहचानना व पहचानने सहज क्रिया । - प्राप्य की उपलब्धि के लिए किए गए बौद्धिक एवं भौतिक प्रयास, खोज पूर्वक।
अन्न     - शरीर पोषण एवं परिवर्धन के लिए प्रयुक्त वस्तुयें।
अन्नमयकोष   - इकाई में प्रवर्त्तित ग्रहण क्रिया , पदार्थावस्था में अंशों का ग्रहण, प्राणावस्था में रस पुष्टि तत्व का ग्रहण, जीवावस्था में जीने के लिए आशा (विषयों का) 
                           ग्रहण, ज्ञानावस्था में संस्कार ज्ञान ग्रहण प्रधान क्रिया  है।

अन्तराल        - अनुभव अध्यापन कार्य व्यवहार व्यवस्था में समायोजित समयावधि।
अन्धेरा            - अपारदर्शक वस्तु के एक ओर अधिक तप्त बिम्ब सहज प्रतिबिम्ब होना दूसरे ओर परछाई-अंधेरा।
                        - धरती के एक ओर सूर्य का प्रतिबिम्ब दूसरे ओर धरती की परछाई। - परछाई जब तक रहता है इसे रात्रि, प्रतिबिम्ब बेला को दिन की संज्ञा है।
अन्याय            - मानवीयता और गुणात्मक विकास में बाधक क्रिया कलाप।
अलंकार           -           शरीर व लज्जा का रक्षा करना।  - शीत वात उष्णातिरेक से बचाव करना।
अखण्ड समाज -   मानवीयता पूर्ण मानव समाज परम्परा, क्रिया पूर्णता व आचरण पूर्णता सहज प्रमाण सम्पन्न मानव परम्परा; मानवीय शिक्षा संविधान व्यवस्था आचरण 
                        सम्पन्न मानव परम्परा; समुदाय चेतना से मुक्ति मानव चेतना संपन्न परम्परा; भ्रम से मुक्त जागृति सम्पन्न मानव परम्परा; व्यक्तिवाद व अवसरवादी 
                        प्रवृत्तियों से मुक्त सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व सहज ज्ञान विवेक विज्ञान संपन्न मानव परम्परा; न्याय सत्यपूर्ण व्यवहार मानव परम्परा; सर्वतोमुखी  
                                    समाधान संपन्न शिक्षा संस्कार परम्परा; दस सोपानीय पाँच आयामी सहज व्यवस्था परम्परा; समाधान, समृद्धि अभय सहअस्तित्व सहज मानव परम्परा
                                    मनाकार को साकार करना व मनः स्वस्थता सहज प्रमाण परम्परा।

                                    -  सहअस्तित्व, समाधान, अभय, समृद्धि पूर्णता।  - धार्मिक (सामाजिक), आर्थिक, राज्यनीति सहज पालन, परिपालन में एक सूत्रता।
                                    - मानवीय संस्कृति, सभ्यता, विधि, व्यवस्था व आचरण में सामरस्यता।
अखंड राष्ट्र       -  मानवीय शिक्षा, संस्कार, राज्य व्यवस्था, संविधान व आचरण में सामरस्यता का वर्तमान।
अखण्डता में ओतप्रोत - व्यापक वस्तु में संपृक्त जड़ -चैतन्य प्रकृति अविभाज्य।  - व्यापक वस्तु में नित्य क्रिया शील प्रकृति।  - नियम नियंत्रण संतुलन प्रमाण।
अग्रिमता  - विकास क्रम पद्धति से होने वाली घटना। स्थिति, गति एवं उपलब्धि की संभावना।
अग्रिम प्रक्रिया - अखण्ड समाज सार्वभौम सहज सूत्र व्यवस्था में जीना।
अग्रगामीयता   - सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व में विकास क्रम, विकास, जागृति क्रम व जागृति सहज निरंतरता। - मानव परम्परा में अमानवीयता से मानवीयता, मानवीयता 
                        से देव मानवीयता, देवमानवीयता से दिव्य मानवीयता और निरंतरता। - व्यक्ति से परिवार, परिवार से समुदाय, समुदाय से अखण्ड समाज।   - विषय 
                        चतुष्टय प्रवृत्तियों से ऐषणात्रय प्रवृत्ति, ऐषणात्रय प्रवृत्ति से लोकेषणात्मक प्रवृत्ति, लोकेषणात्मक प्रवृत्ति से सर्वशुभ प्रवृत्ति अग्रगामीयता है।

अग्रेषण            - आगे गति, आगे फल, आगे प्रयोजन। - अग्रिम विकास के लिए क्षमता, योग्यता, पात्रता की नियोजन क्रिया । अग्रिम विकास पद में संक्रमण, पूरकता व 
                        उदात्तीकरण क्रिया  जैसे -पदार्थावस्था से प्राणावस्था, प्राणावस्था से जीवावस्था, जीवावस्था से ज्ञानावस्था की वर्तमान क्रिया ।

अर्जन               - स्वत्व होना।  - स्वतंत्र होना। - जागृति पूर्ण होना। - योग्यता व पात्रता को लक्ष्य के अर्थ में विवेक और विज्ञान पूर्वक किए गए क्रिया कलापों से प्राप्त 
प्राप्तियाँ। (नोट :  -मानव परम्परा में संपूर्ण प्राप्तियाँ स्वतंत्रता एवं स्वराज्य ही है क्योंकि स्वतंत्रता भ्रम मुक्ति का साक्षी है और स्वराज्य, मानवीयता का साक्षी है। भ्रम मुक्ति ही, मुक्त जीवन है।)  - स्वत्व के रूप में प्राप्ति।

अजस्त्र प्रवहन - प्रखरता व पूर्णता में से के लिए समझ सहज निरंतरता। - समाधान सहज निरंतरता। - कार्य व्यवहार व्यवस्था सहज निरंतरता।
अजीर्ण             - आवश्यकता से अधिक ग्रहण करना अथवा होना। - आवश्यकता से अधिक संग्रह करना। - आवश्यकता से अधिक अतिभोग, बहुभोग करना।
अजीर्ण परमाणु  - संतुलन व नियंत्रण से अधिक प्रस्थापित अंशों का होना। - अंशों को विस्थापित करने में प्रयत्नशील परमाणु। - विकिरण प्रसार कार्यरत परमाणु।
अणु    - एक से अधिक परमाणुओं का गठित रचनायें।
अणु बंधन  - अणु रचना में परमाणु भार का आधार।   - परमाणु के मध्यांश-भार बन्धन सूत्र है।
अतिमानवीयता -धीरता, वीरता, उदारता, दया, कृपा, करुणापूर्ण स्वभाव। -सुख, शांति व संतोष, आनंद रूपी धर्म व सत्यमय दृष्टिYAYयां। विषय-लोकेषणा, अस्तित्व रूपी परम सत्य।
अतिवाद  - व्यक्तिवाद, समुदायवाद अधिमूल्यन, अवमूल्यन, निर्मूल्यनवादी वार्तालाप।
अतिभोग   - आहार, निद्रा, भय, मैथुनात्मक क्रिया  कलाप में लिप्त रहना।
अतिरेक   - असंतुलनकारी क्रिया कलाप। - पूरकता उपयोगिता सहज वैभव से रिक्त रहना।
- समस्याओं से पीडि़त रहना, समस्याकारी कार्य व्यवहार करना।
अतिसंतृप्ति  - मानव परम्परा में सदा-सदा के लिए तृप्ति  -  सर्वतोमुखी समाधान, जागृति, दृष्टा पद प्रतिष्ठा।
                          - ज्ञानानुभूति (अस्तित्व में अनुभूति और उसकी निरंतरता) में स्थिति व गति।
अतिसूक्ष्मांश   - परमाणुओं में संगठित रूप में कार्यरत अंश।   - परमाणु सूक्ष्म क्रिया  और परमाणु अंश अतिसूक्ष्म क्रिया ।
अतिइन्द्रियानुभव   - जीवन में से के लिए अनुभव प्रमाण, जीवन मूल्य मानव मूल्य स्थापित मूल्यों का अनुभव प्रमाण।
अतिविपन्न   - तन-मन-धन संबंधी समस्याओं की पीड़ा, भ्रमवश किया गया कार्य व्यवहार का फल परिणाम संबंधी पीड़ा, दीनता हीनता क्रूरतावादी सोच विचार कार्य-
             व्यवहार सबन्धी पीड़ा।

अथक               - जागृत मानसिकता सहज प्रमाण।
अर्थतंत्र            - जागृत मानसिकता सहित तन व धन की उपयोगिता, सदुपयोगिता, प्रयोजनशीलता एवं विनिमिय सुलभता प्रमाण।
अर्थनीति         - तन-मन-धन का सदुपयोगात्मक सुरक्षात्मक कार्य व्यवहार व निरंतरता।
अर्थशास्त्र         - विधिवत किया गया अर्थोपार्जन सहज अर्थ का सदुपयोगात्मक, सुरक्षात्मक एवं विनिमियात्मक विचारों का आवर्तन शील प्रेरणा स्रोत
अर्थ सुरक्षा  - अर्थ की अखण्ड समाज में ही सदुपयोग और वर्तमान में विश्वास ही अर्थ की सुरक्षा है (तन-मन-धन के रूप में अर्थ)।
अर्थोपार्जन  - ज्ञान विवेक विज्ञान सम्पन्नता, सर्वतोमुखी समाधान संपन्नता, न्यायोन्मुखी प्रवृत्ति सहित समृद्धि सहज अर्थ में किया गया उत्पादन।
अछेद्य              - जिसका भाग विभाग न हो । साम्य ऊर्जा, सत्तात्मक अस्तित्व।
अद्यमी             - समस्याकारी (भ्रमित मानव)।
अधमता           - वीभत्स कार्य व्यवहार घटना।
अर्ध चेतन  - पहचान क्रिया  में अस्पष्टता।
अर्धांगिनी   - पति-पत्नी सहज परस्परता में जागृत मानसिकता सहित एक रूपता, स्व  -  नारी व स्व  -  पुरूञ्ष संबंध प्रमाणित होता हुआ दापत्य।
अधिकार         - ज्ञान-विवेक-विज्ञान सम्पन्नता पूर्वक सर्वतोमुखी समाधान सम्पन्नता सहित अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी करना सम्पन्नता है।
                        - सहअस्तित्व में व्यवस्था सूत्र का क्रियान्वयन, चूंकि अस्तित्व में ''प्रत्येक इकाई अपने त्व सहित व्यवस्था है''। मानव के लिए मानवत्व ही स्वराज्य।
अधिकारी        - जागृत मानव ही मानवीयता पूर्ण विधि से जीने देते हुए जीने का अधिकारी है। - गुणात्मक परिवर्तन, विकास।
अधिमूल्यन  - जो जिसका रूप गुण स्वभाव धर्म है उससे अधिक मानना।
                         विकास की ओर गति, जागृति की ओर गति (गठनपूर्णता की ओर विकास, प्रमाणिकता और समाधान की ओर जागृति)।
अधिष्ठान         - चैतन्य इकाई का मध्यांश आत्मा है अधिष्ठान। मध्यस्थ शक्ति, मध्यस्थ क्रिया , मध्यस्थ बल का वर्तमान।
अध्याहार        - तर्क एवं युक्ति संगत पद्धति से व्यवहार प्रमाण सिद्ध करना।
अध्यापक         - समझदार मानव, समझदारी प्रमाण सहित समझाने सहज कार्य करने वाला। - ज्ञान विवेक विज्ञान सहित समाधान सहित व समृद्धि संपन्न मानव।
                        - स्वयं में विश्वास; श्रेष्ठता का सम्मान; प्रतिभा व व्यक्तित्व में संतुलन; व्यवहार में सामाजिक, व्यवसाय (उत्पादन) में स्वावलबी मानव।
अध्यापन   - समझा हुआ को समझाना, सीखे हुए को सीखाना, किए हुए को कराना। - अधिष्ठान के साक्षी में अर्थ बोध कराने के लिए कारण गुण गणित पूर्वक किए गये  
                        संपूर्ण क्रिया कलाप। - हर विद्यार्थी स्वयं में विश्वास श्रेष्ठता का सम्मान, प्रतिभा व व्यक्तित्व में संतुलन, व्यवहार में सामाजिक व्यवसाय में स्वावलबन योग्य 
                        शिक्षा  संस्कार में पारंगत होने की क्रिया ।

अध्ययन        - अधिष्ठस्नन (आत्मा) व अनुभव की साक्षी में स्मरण पूर्वक किए गए क्रिया-प्रक्रिया  एवं प्रयास।
अध्ययनगम्य - सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व चारों अवस्था त्व सहित व्यवस्था एवं समग्र व्यवस्था में भागीदारी का सहज रूप में स्पष्ट होना।
                        - वस्तुस्थिति सत्य, वस्तुगत सत्य, स्थिति सत्य स्पष्ट होना।  - सत्यता, यर्थाथता, वास्तविकता स्पष्ट होना।
अध्यात्मिकता   - व्यापक वस्तु नित्य वर्तमान सहज ज्ञान सम्पन्नता।   - व्यापक वस्तु में जड़-चैतन्य प्रकृति ऊर्जा संपन्न।
                        - क्रिया शील नियम नियंत्रण सन्तुलन सम्पन्नता ज्ञान विवेक विज्ञान वैभव परम्परा।
अध्यात्म          - समस्त आत्माओं के आधारभूत ''सत्ता''। व्यापक, अरूपात्मक अस्तित्व, निरक्षेप ऊर्जा, परम अवकाश, परमात्मा।
                        - शून्य ही साम्य ऊर्जा महाकारण, चेतना, परस्परता में दूरी, जड़-चैतन्य प्रकृति में पारगामी, पारदर्शी, पूर्ण।
                        - मध्यस्थ सत्ता स्थिति पूर्ण है, सत्ता में संपृक्त प्रकृति नियम नियंत्रण संतुलन न्याय धर्म सत्य प्रकाशन पूर्वक त्व सहित व्यवस्था समग्र  व्यवस्था में 
                        भागीदारी पूर्वक परम्परा है।

अध्यास            -  शरीर में संपन्न होने वाले क्रिया कलाप  -  संवेदना।
- यांत्रिक क्रिया  (कर्मेन्द्रिय द्वारा भी) बिना मन के सहायता या न्यूनतम सहायता से होने वाली क्रिया ओं का सम्पन्न होना, ''चलना सीखने    के पश्चात  
            चलना''। - परम्परागत शारीरिक कार्यकलापों और विन्यासों को गर्भावस्था से ही स्वीकारने के क्रम में जन्म के अनंतर अनुकरण करने की प्रक्रिया ।

अध्यात्मवाद- सह-अस्तित्व में अनुभव मूलक पद्धति से सत्ता में सपृक्त प्रकृति सहज अभिव्यक्ति।
                        - अनुभव मूलक विधि से सत्ता में संपृक्त जड़-चैतन्य प्रकृति सहज अभिव्यक्ति संप्रेषणा।
                        - अनुभव मूलक विधि से सत्ता में संपृक्त चारों अवस्थाओं का अध्यापन विधि से प्रकाशन।
अध्यात्म विज्ञान  - नित्य, सत्य, शुद्ध, बुद्ध सत्ता में अनुभूति योग्य क्षमता हेतु प्रयुक्त प्रक्रिया  प्रणाली।
अनवरत          - सदा-सदा वर्तमान।
अनर्थ  - जिसका जो स्वभाव गुण न हो और जो गुणात्मक परिवर्तन के लिए सहायक न हो, जैसे   
-   मनुष्य मानवत्व के प्रति जागृत न होकर जीवों के सदृश्य जिए।
अनवरत सुलभ - सदा-सदा प्राप्त।
अनावश्यक  - प्रतिक्रान्ति, जो विकास में सहायक न हो एवं अहितकारी हो ऐसे क्रियाकलाप।
अनादि             - शुरूआत के बिना नित्य वर्तमान।
                        - अस्तित्व सहज वर्तमान का कारण, गुण, गणित से आरंभ होने का प्रमाण सिद्ध न होना।
                        - जिसके आदि का कारण न होना अथवा उत्पत्ति का सूत्र ही न होना।
अतिव्याप्ति दोष          - भ्रमवश अधिमूल्यन कार्य व्यवहार।  - जिसका अर्थ जैसा है, उसे उससे अधिक मानने की भ्रमित क्रिया ।
अनाव्याप्ति दोष          - भ्रमवश अवमूल्यन कार्य व्यवहार।  - जिसका अर्थ जैसा है, उसे उससे कम मानने की भ्रमित क्रिया ।
अव्याप्ति दोष              - भ्रमवश निर्मूल्यन कार्य, व्यवहार।  - निरीक्षण परीक्षण में त्रुटि, अपूर्णता।   - यथार्थता से भिन्न।
                                    - जिसका अस्तित्व जैसा है, उसे उससे भिन्न मानने की भ्रमित क्रिया ।
अनासक्ति        - भ्रम व अमानवीय विषयों से मुक्ति; मानवीय, देव व दिव्य मानवीय विषयों में प्रवृति प्रमाण।
अनुर्वरा            - बीज को पाकर अनेक बीजों को उत्पन्न करने में अनुपयोगी, अक्षम मिट्‌टी।
अनुकंपा           - अभ्युदय के अर्थ में, सर्वतोमुखी समाधान में, से, के लिए समझदारी, ईमानदारी व भागीदारी से जीने देने के रूप में किया गया उपकार व 
            सहयोग सहायता।

अनुकरण         - संप्रेषणा के रूप में किया गया मानसिक, कायिक व वाचिक क्रिया ओं का दोहराना।
अनुकूल           - स्वीकारने योग्य परिस्थितियाँ  -  परम्परागत क्रम में मानवीय संस्कृति सभ्यता विधि व्यवस्था सहज वर्तमान (आचरण)।
अनुकूल आचरण  - मानवीय मूल्य चरित्र नैतिकता सहज प्रमाण परम्परा।
अनुक्रम            - विकास क्रम विकास, जागृति क्रम, जागृति और जागृति सहज निरंतरता।
                        - विकास क्रम में वर्तमान क्रिया-प्रक्रिया  और उपलब्धि का पूर्ण चक्र या संपूर्ण रूप।
अनुक्रम से प्राप्त उत्पत्ति   -   विकास क्रम में गुणात्मक योग्यता का उपार्जन।
अनुगमन          - परम्परा के रूप में अनुकरणीय गति, मानवीयता पूर्ण परम्परा गति में भागीदारी करना।
अनुग्रह             - दया, कृपा, करुणा सहज अभिव्यक्ति संप्रेषणा।  - मानव परम्परा में जागृति सहज क्षमता के लिए योग्यता पात्रता स्थापना कार्य।
अनुदान           - अभ्युदय के अर्थ में समर्पण।
अनुपम            - मौलिकता सम्पन्न होना। पदार्थावस्था में मृद, पाषाण, मणि धातु के रूप में मौलिक, प्राणावस्था व जीवावस्था मौलिक और ज्ञानावस्था में मानवीयता पूर्ण 
                        आचरण सम्पन्न मानव मौलिक है।

अनुपातिक विधि   - सहअस्तित्व सहज स्थिति में मात्रा का गति में।  - सहअस्तित्व सहज स्थिति में दूरी का रचना में।
                                    - सहअस्तित्व सहज स्थिति में विस्तार का परस्परता में।  - सहअस्तित्व सहज स्थिति में पूरकता ही अनुपातिक विधि है ।
अनुमान    - अनुक्रम से किए गए अपेक्षा क्रिया  जो वृत्ति, चित्त और स्मरण (धी) के संयुक्ततता में होता है।
                        - ''निश्चित'' क्रिया-कलाप के पक्ष में किया गया अपेक्षा।  - आवश्यकीय (मानवीय) क्रिया   -  कलापों के अर्थों में अपेक्षा।
अनुप्राण           - अनुरागीय प्रेरणा।  - सहअस्तित्व में विकास क्रम विकास जागृतिक्रम जागृति सहज निरंतरता में परस्परता, परस्पर प्रेरणा है।
                        - सह अस्तित्व में ही चारों अवस्थायें व पद अनुपातीय विधि से वर्तमान और उपयोगिता पूरकता विधि से प्रेरकता व प्रेरित होना।
अनुप्राण सूत्र- विकास क्रम में भौतिक रासायनिक वस्तु के यथास्थिति सहज वैभव के अर्थ में।
                        - संपूर्ण प्रकृति परस्परता में पूरक है यही अनुप्राण सूत्र है।
अनुप्राणित  - चार अवस्था व चार पद व्यवस्था सहज रूप में प्रमाण परम्परा।
अनुबन्ध           - संबंधों में आवश्यकता सहज आधार पर स्वीकृति पूर्वक पूरकता उपयोगिता विधि से निर्वाह।
                        - स्वीकृति व वचनबद्धता पूर्वक निर्वाह, स्वीकृति जागृति सहित संकल्प पूर्वक त्व सहित व्यवस्था समग्र व्यवस्था में भागीदारी का निर्वाह।
                        - अनुक्रञ्मात्मक परस्परता (विकास क्रम की अवधारणा एवं संकल्प सहित निष्ठा)।
अनुबंधानुक्रम- जागृति सहज परम्परा के रूप में निर्वाह।
अनुबन्धित  - स्वीकृति, जागृत प्रयास व दृढ़ता।
अनुबिम्ब         - हर बिम्ब का प्रतिबिम्ब रहता है, हर बिम्ब का प्रतिबिम्बन अनुबिम्ब कहलाता है जो बहुकोणों में प्रसारित रहता है।
अनुबिम्बन  - अनेक कोणों में प्रतिबिम्ब प्रसारण क्रिया ।
अभिभूत          - अभ्युदय के अर्थ में जागृति पूर्वक अभिव्यक्ति संप्रेषणा सहज सम्पन्नता व प्रमाणित करने की प्रवृत्ति।
अनुभव बल -  मानव परम्परा में से के लिए प्रमाण सहज स्रोत।  - मानव संचेतना सहज अभिव्यक्ति संप्रेषणा प्रकाशन।
                        - अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था सहज प्रकाशन।
अनुभवगम्य - अध्ययन पूर्वक अनुभव मूलक विधि से अभिव्यक्ति संप्रेषणा प्रकाशन। - समीचीन अनुभव मूलक विधि से अनुभवगामी प्रणाली से अध्ययन व प्रमाण।
                        - मानवत्व सहित व्यवस्था समग्र व्यवस्था में भागीदारी सहज प्रमाण।
अनुभवगामी - मानवीयता पूर्ण आचरण रूपी मानव संस्कृति का बोध कराना। - मानवीय महिमा संपदा का बोध कराने व करने का कार्य।
                        - सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी में, से, के लिए आवश्यकता बोध कराना।
अनुभव दर्शन- सहअस्तित्व में अनुभव प्रमाण सहज सत्यापन। - व्यापक वस्तु में संपूर्ण एक-एक संपृक्त है यह समझ में आना प्रमाणित होना।
                        - व्यापक वस्तु सहज साम्य ऊर्जा के रूप में समझ में आना प्रमाणित होने का सूत्र व व्याख्या है।
अनुभवशील - अनुभव क्रम में अध्ययन  -  अध्यापन करता हुआ मानव।
अनुभवात्मक अध्यात्म  -  यह अस्तित्व में अनुभूति और उसकी अभिव्यक्ति।
अनुभवात्मक अध्यात्मवाद  -  सहअस्तित्व में मध्यस्थ सत्ता, मध्यस्थ क्रिया , मध्यस्थ बल, मध्यस्थ शक्ति और मध्यस्थ जीवन का अध्ययन, अवधारणा और अनुभव।
अनुभूत            - अनुभव सहज सम्पन्नता।
अनुभूति           - अनुक्रम से प्राप्त (जागृति क्रम में प्राप्त) सजगता एवं सतर्कता पूर्ण समझदारी की अभिव्यक्ति, संप्रेषणा व प्रकाशन (अनुक्रम याने विकास और जागृति)।
                        - अनुक्रम अर्थात्‌ विकास क्रम में प्राप्त सतर्कता एवं सजगतापूर्ण समझदारी, विचार शैली एवं जीने की कला जो स्वयं मानव परम्परा में प्रामाणिकता व 
                        समाधानपूर्ण अभिव्यक्ति, समाधान और न्यायपूर्ण संप्रेषणा तथा न्याय और नियमपूर्ण जीने की कला का प्रकाशन व क्रिया कलाप।

            - अनुभूति स्वयं प्रत्येक मनुष्य में होने वाली जीवन जागृति सहज जानने व मानने की क्रिया  है।
                        - सहअस्तित्व ही संपूर्ण भाव है, इस कारण ''प्रत्येक एक अपने 'त्व' सहित व्यवस्था है'' और समग्र व्यवस्था में भागीदार है  -  इस कारण प्रत्येक एक में  
                        वास्तविकता और सत्यता नित्य वर्तमान है, उसे यथावत्‌ जानने मानने की क्रिया  ही मनुष्य में अनुभव के नाम से जाना जाता है। इंद्रिय सन्निकर्ष अर्थात्‌
                        इंद्रिय गोचर जितने भी क्रिया कलाप है वह सब पहचानने एवं निर्वाह करने के रूप में प्रमाणित होने का नाम ही भाव एवं अध्ययन है।
अनुभूति सर्वस्व- चिदानंद- चित्त में सत्य बोध का आप्लावन, स्वीकृति और अभिव्यक्ति।  - आत्मानंद   -   आत्म बोध, चित्त में होने वाली अनुभव सहज, बुद्धि में होने 
                        वाला आप्लावन।  - ब्रह्मास्ननंद  -  सहअस्तित्व में अनुभव, उसकी अभिव्यक्ति।

अनुमान           - अनिश्चित योजना आंकलन।
अनुमोदन        - प्राप्त प्रस्ताव को स्वीकारना।
अनुमोदित       - स्वीकृतप्रस्ताव।
अनुयायी          - निश्चित योजना कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए संकल्पनिष्ठ सम्पन्न मानव।
अनुरंजित        - आवश्यकता के अनुसार शोभनीय रूप प्रदान करना, प्रेम सहज तत्परता।
अनुरूप            - अनुक्रम से प्रस्तुत रूप।
अनुवर्तित   - क्रमागत सार्थक आचरण व प्रक्रिया ।
अनुवर्ती क्रिया -          बार-बार दोहराना।
अनुष्ठस्नन         - मौलिक अधिकार का निर्बाध गति से किया गया आचरण। अनुक्रम पूर्वक उत्थान के लिए किया गया कार्यकलाप।
अनुषंगी           - मानव परम्परा में संस्कार, जीवावस्था में वंश परम्परा, प्राणावस्था में बीज वृक्ष परम्परा, पदार्थावस्था में परिणाम परम्परा।
अनुचित          - मानवीयता, देव मानवीयता और दिव्य मानवीयता के विपरीत क्रिया कलाप जो स्वयं अमानवीयता के रूप में पशु मानव एवं राक्षस मानव के प्रवृत्ति एवं 
                        कार्यकलाप को स्पष्ट करता है ।

अनुशासन   - यर्थाथता वास्तविकता सत्यता सहज सम्पन्न होने का क्रम।
अनुशीलन       - बोध सम्पन्नता क्रम में स्वयं स्फूर्त संतुलन।
अनुराग            - निर्भ्रमता में प्राप्त आप्लावन।
अनुरागीय   - क्रमागत विधि सहज स्वीकृति व निष्ठा।
अनुसंधान        - मानवीयता पूर्ण परम्परा में से के लिए ज्ञान विवेक विज्ञान संबंधी सहज सूत्र व्याख्या।
                        - व्यवस्था, आचरण, संविधान स्वीकार होने योग्य पद्धति व शिक्षा। - अनुभवमूलक उद्‌घाटन।
अनुस्मरण        - अज्ञात को ज्ञात करने अप्राप्त को प्राप्त करने की परम्परागत सूत्र व्याख्या प्रमाण सहित प्रयोगों को अपनाना।
अनुस्यूत           - निरंतर अथवा निरंतरता होना।
अनेकता           - मतभेद, अवस्था भेद, यथास्थिति।
अनेक कर्म  - उत्पादन कार्य में अनेक उपाय व प्रक्रिया ।
अनिर्वचनीय - वचन से नहीं बताया जा सकना अथवा नहीं बता पाना।
अनिष्ट              - भ्रमात्मक सोच विचार कार्य  -  व्यवहार के रूप में समस्याएं।
                        - प्रगति एवं विकास और उसकी अपेक्षा के विपरीत घटना और क्रिया कलाप। (अमानवीयता)
अनिवार्य          - समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, भागीदारी।
अनिवार्यता  - विकल्प विहीन आवश्यकता, प्रक्रिया ।
अनिश्चियता - समाधान सुनिश्चित न होना।
अनीति            - तन, मन, धन रूपी अर्थ का अपव्यय।
अत्याशा          - अन्तहीन संग्रह सुविधा में प्रवृत्ति विवशता।
अपरा              - फलवत ज्ञान। (परा अर्थात्‌ मूलवत ज्ञान)
अपराध           - नियति विरोधी सार्वभौम व्यवस्था विरोधी कार्य व्यवहार प्रवृत्तियाँ।
                        - पर-धन, पर-नारी/ पर-पुरुष, पर-पीड़न क्रिया ।
अपनापन        - जागृत मानव सहज परस्पर संबंधों में विश्वास।
अपनत्व           - मानवत्व सहज समानता का पहचान विधि सहज प्रवृत्ति आचरण।
अपहरण          - बलपूर्वक अन्य के स्वत्व, स्वतंत्रता अधिकार पर हस्तक्षेप। उन्हें उससे  वंचित कर देना।
अपरिग्रह         - उत्पादन में स्वावलंबी, श्रमपूर्वक समृद्धि पर विश्वास होना।
अपरिणामी  - चैतन्य इकाई, व्यापक वस्तु, गठनपूर्ण परमाणु, जीवन।
                        - स्थिति पूर्ण सत्ता, अरूपात्मक अस्तित्व ज्ञान, ब्रह्म , ईश्वर, निरपेक्ष शक्ति, चेतना व जीवन।
अपरिणामिता- भारबन्धन, अणुबन्धन, प्रस्थापन  -  विस्थापन से मुक्त वैभव।
अप्रिय              - इंद्रियों से अग्राह्य।
अपरिहार्य   - यथास्थिति पूरकता उपयोगिता।
अपरिहार्यता - विकल्प विहीन सुलभ संभावना।
अपव्यय           - दीनता, हीनता, क्रूरता में, से,के लिए किया गया तन मन धन रूपी अर्थ का व्यय।
अपव्यय का अत्याभाव -   मानवत्व सहित व्यवस्था समग्र व्यवस्था में भागीदारी।
अपारदर्शकता - एक तरफ प्रकाश पड़ने पर दूसरे तरफ परछाई होना अपारदर्शकता का अर्थ है। अपारदर्शी वस्तु भी एक बिम्ब है। उस पर जितने भी प्रकाश पड़ता है वह सब 
                        किसी बिम्ब का ही प्रतिबिम्ब है।

अपूर्ण               - किसी भी धरती पर चारों अवस्था त्व सहित व्यवस्था प्रकट होने के क्रम में अपूर्ण, प्रकट होने के उपरान्त परम्परा सहज वैभव है।
                        - इस धरती पर मानव अपने मनाकार को साकार करने के क्रम में समर्थ मनः स्वस्थता को प्रमाणित करने के क्रम में वर्तमान सन्‌ ख्त्त्िं तक अपूर्ण।
अपूर्ण फल  - मानव समझदार, ईमानदार, जिम्मेदार, भागीदार होने के पहले अपूर्ण फल है। समुदाय मानसिकता सहित अपूर्ण है।
            - जिस फल के अनंतर पुनः फलोपलिध के लिए प्रयास शेष हो।
अपूर्ण दर्शन - मानव परम्परा में सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व दर्शन ज्ञान जीवन ज्ञान मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान संपन्नता पर्यन्त अपूर्ण दर्शन।
अपूर्ण धन  - आवर्तनशील अर्थतंत्र के पहले अपूर्ण धन।
अपूर्ण पद       - लाभोन्माद, भोगोन्माद, कामोन्माद प्रवृत्ति लक्ष्य सुविधा संग्रहवादी सभी पद समस्याओं से ग्रसित हो यही अपूर्ण पद है।
अपूर्ण बल  - द्रोह  -  विद्रोह शोषण युद्ध में, से, के लिए नियोजित किया गया बल का परिणाम अपूर्ण। जीने देकर जीने में प्रयुक्त तन-मन-धन का फल पूर्ण बल है।
अपूर्ण बोध  - सहअस्तित्व में अनुभव प्रमाण बोध होने के पहले अपूर्ण बोध।
अपूर्ण समाज-              सच्चरित्रता संपन्न होने तक अपूर्ण समाज।
अर्पण   - स्व संतोष, तोष अथवा श्रद्धापूर्वक किया गया आदान  -  प्रदान।  - अपेक्षा सहित नियोजन क्रिया ।
अपरिष्कृत   - वस्तु अपने निश्चित रूप गुण स्वभाव धर्म से विकृत होना।
अपेक्षा             - संवेदनशीलता के आधार पर लाभ भोग काम की आशा आवेश। - संज्ञानशीलता के आधार पर समाधान समृद्धि अभय सहअस्तित्व में प्रमाण।
                        - आवश्यकीय आशा (परस्पर दायित्व एवं कर्तव्य पालन की इच्छा या पालन में विश्वास)।
अपेक्षाकृत       - परस्परता की तुलना में।
अपेक्षित           - अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था।
अप्रकाशन       - प्रकटन का पूर्व रूप क्रिया । सहअस्तित्व सहज अभिव्यक्ति में असमर्थता।
अभय               - वर्तमान में विश्वास। - सहअस्तित्व और आनंद सहज अपेक्षा में बौद्धिक समाधान और भौतिक समृद्धि पोषण क्रिया ।  - परस्पर विश्वास और पूरक क्रिया ।
अभयशील   - वर्तमान में विश्वासापेक्षा अभय के लिए आशान्वित।
अभयता           - भविष्य में भी अभयता पूर्वक जीने के लिए आशा, विचार परिस्थिति। वर्तमान में विश्वास।
अभ्यस्त           - अभ्यास किया, जागृत हो चुके, प्रमाण के रूप में प्रस्तुत है।
अभ्यास           - सर्वतोमुखी समाधान रूपी व्यवस्था सहज साक्षात्कार करने के लिए किया गया प्रयास (चिंतन) व प्रयोग।- समाधान पूर्ण संचेतना पूर्वक मनुष्य के समस्त 
                        क्रिया-कलाप।     - न्याय दृष्टि सम्पन्न, दयापूर्वक समस्त कार्य-व्यवहार मानवीय परस्परता में पूरकता व उदात्त पूर्वक क्रिया यें, साम्य मूल्यों समानता व विश्वास 
                        सहज निरंतरता के अनुभूति में मानवीय कार्य, साधनों के उत्पादन-विनिमय व सुरक्षा-सदुपयोग की सुनिश्चितता व निरंतरता सहज कार्यकलाप, पारंगत व 
                        प्रमाणित होने की प्रक्रिया ।

अभ्यास दर्शन- अभ्यास से होने वाले प्रयोजन उपयोगिता व आवश्यकता सहज स्वीकृति। - समझ सहज आवश्यकता रूप में स्वीकृति।
- समझने के उपरान्त समझाने में ध्यान देने पर स्वीकृति।
अभ्यास त्रय - प्रयोग, व्यवहार और चिंतन।
अभ्युदय           - सर्वतोमुखी समाधान (मानवीय शिक्षा, संस्कार, आचरण, व्यवहार, विचार  एवं अनुभूति राज्य व्यवस्था एवं संविधान परम्परा) सम्पन्नता व प्रमाण।
                        - सार्वभौम राज्य व्यवस्था।
अभ्युदय पूर्ण- अखण्ड सामाजिकता सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी परम्परा।
अभ्युदयशील  - सर्वतोमुखी समाधान में, से, के लिए प्रयत्न सहज क्रिया  कलाप की स्वीकृति व प्रमाण।
अभिमान         - आरोपित मान (मापदण्ड) जिसमें स्व बल, बुद्धि, रूप, पद, धन को श्रेष्ठ तथा अन्य को नेष्ट मानने वाली प्रवृत्ति एवं क्रिया ।
अभिनंदन   - अभ्युदय प्रमाण प्राप्तकर्ता के प्रति समान, कृतज्ञता सहज अभिव्यक्ति संप्रेषणा व प्रकाशन।
अभिनय           - स्वयं अमानवीयता में प्रवृा रहते हुए मानवीयता, देव मानवीयता का काल्पनिक विधि, वेश, भाषा, भाव भंगिमा अंगहार सहित प्रदर्शन।
अभिभावक  - पोषण  -  संरक्षण कार्य सहित अभ्युदय चाहने वाला।
अभिभूत          - ज्ञान विवेक विज्ञान सहज संकल्प चिंतन में तत्परता, ज्ञान विचार निश्चयन क्रियान्वयन फल परिणाम ज्ञानानुसार होने व समाधान में स्वीकृत, मुद्रा भंगिमा।
अभिलाषा       - समाधान सुखी होने सहज आशा अपेक्षा।
अभिव्यक्ति      - सर्वतोमुखी समाधान में से के लिए किया गया कायिक वाचिक मानसिक क्रिया कलाप।
- अभ्युदय के अर्थ में स्वअस्तित्व सहज प्रकाशन। चैतन्य प्रकृञि की आशा, विचार, इच्छा, संकल्प एवं अनुभूतियों तथा जड़ प्रकृति रूपी शरीर की रासायनिक तथा भौतिक रचना व क्रिया  के द्वारा अन्य को सर्वतोमुखी समाधान, समझ में आने के रूप में किया गया संपूर्ण कायिक, वाचिक, मानसिक क्रिया ।
                        - अभ्युदय अर्थात्‌ सर्वतोमुखी समाधान का क्रियान्वयन विचार, विन्यास, व्यवहार क्रिया कलाप।
अभिव्यंजना - अभ्युदय (सर्वतोमुखी) में से के लिए प्राप्त प्रेरणाओं को स्वीकार करने और उत्सवित रहने सहज प्रमाण।
अभिशाप         - भ्रमवश समस्याओं की पीड़ा से पीडि़त रहना और पीडि़त करना।
अभिहित         - समाधान जागृति के लिए निश्चित विधि बोध/समझ में आना।
अभिप्राय         - अभ्युदय के परिप्रेक्ष्य में व्यंजना अयुदयार्थ व्यंजना। (दूसरों का समझा पाना)
अभीप्सा          - अभ्युदय के लिए स्वीकृति व इच्छा।
अभीष्ट             - जागृति सहज वैभव परम उपलब्धि के रूप में स्वीकारना प्रकट करना। - अभ्युदय के अर्थ में प्रयुक्त आशा, आकांक्षा, इच्छा संकल्प।
अभीष्ट समाधान - सर्वतोमुखी समाधान सहज प्रमाण प्रस्तुत करना।
अमति              - अमान्य कर्म, शास्त्र व विचार।  - जीव चेतनावादी।
अमन               - सुखी होने का प्रमाण, सुख संतोष सम्पन्नता।
अमरत्व           - अक्षय बल व शक्ति सम्पन्न चैतन्य इकाई गठन पूर्णता, चैतन्य क्रिया , चैतन्य पद प्रतिष्ठा और भ्रम मुक्ति तथा उसकी निरंतरता ।
अमर    - परिणाम का अमरत्व जीवन रूपी चैतन्य इकाई।
अमानवीयता  - हीनता, दीनता, क्रूरतात्मक स्वभाव, प्रिय हित लाभात्मक दृष्टि तथा आहार, निद्रा भय मैथुन  -  सीमान्तवर्ती विषय प्रवृत्तियाँ।
अमानवीय दृष्टि - प्रिय, हित, लाभ।
अमानवीय विषय -   आहार, निद्रा, भय, मैथुन।
अमानवीय स्वभाव -   दीनता, हीनता, क्रूरता।
अमानवीयता का भय -   द्रोह, विद्रोह, शोषण व युद्ध।
अमीर              - अधिक संग्रही या संग्रही।
अमूल्य             - मूल्यांकन सीमा से अधिक।
अमोघ             - परम, अधिक कम से मुक्ति (पूर्णता)।
अमृतमय         - सहअस्तित्व में जागृत जीवन।
अरमान           - सकारात्मक अपेक्षायें।
अरहस्यता   - समझदारी, सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व वर्तमान।
अरुचि             - स्वीकार नहीं होना।
अरूपात्मक वस्तु -   सत्ता, साम्य ऊर्जा।
अरुपात्मक अस्तित्व - पारगामी, पारदर्शी महिमा सम्पन्न व्यापक वस्तु।
अलगाव          - किसी समति का अलग-अलग करना  -  मतभेद होना।
अलाभ             - अधिक मूल्य के प्रदान में कम मूल्य का आदान।
अलाद चक्र     - रस्सी के एक छोर को जलाकर घुमाने से एक ध्रुव में आग रहते हुए आंखों में आग गोलाकार में दिखाई पढ़ता है यही अलाद चक्र है। जबकि रस्सी अति 
                        छोटे समय में एक ही जगह होती है। इससे पता लगता है कि सच्चाई आँखों में नहीं आता समझ में आता है।

अलिप्तता         - विषय चतुष्टय तथा एषणा त्रय के प्रति मुक्त क्रिया ।
अवगाहन        - समझने की सफल प्रक्रिया । - ओत-प्रोत अवस्था। अनुभव की साक्षी में अवधारणा क्रिया ।
अवकाश          - प्रत्येक इकाई की परस्परता के मध्य में पाये जाने वाले रिक्त स्थान के रूप में ऊर्जा, व्यापक अस्तित्व।
अवतरण          - प्रगट होना।
अवतरित   - प्रकट हो चुका।
अवतारी          - उपकार करने वाला, नासमझ को समझदार होने में सहायक होना।
अवधि              - सीमा, सभी ओर से सीमित इकाई, वस्तु।
अवनति           -  अवकाश   -   पतन की संभावना, गिरने की संभावना, ह्रास की संभावना, ह्रास की ओर गति।
अवमूल्यन   - जो जिसकी मौलिकता है उससे कम आंकना। - ह्रास = स्वभाव मूल्यों का अप्रकाशन।
अवलंबन         - आश्रित अथवा आश्राम (श्रम सहित आश्रय किये रहना आश्राम है)। विकास पूर्ण परम्परा बनाये रखना।
अवयव             - एक रचना में समाहित उप रचना।
अवबोधन        - अवधारणा में, से, के लिए शिक्षा एवं उपदेश प्रक्रिया ।
अवलोकन   - निरीक्षण, परीक्षण व सर्वेक्षण, स्पष्टता  -  समझना, हर अवस्था सहज इकाईयों का रूप गुण स्वभाव धर्म समझना।
अवरोध           - रुकावट।
अवश्यम्‌भावी- भविष्य में घटने वाली घटना। - किसी भी कार्यकलाप का फल परिणाम होना।
अवसरवादी     - प्रिय-हित-लाभात्मक प्रवृत्ति पूर्वक किया गया द्रोह, विद्रोह, शोषण, युद्ध, कार्य।  - इसे आगे पीढ़ी को समझाना यही भ्रमात्मक परम्परा है।
अवस्था            - चार अवस्था (पदार्थ, प्राण, जीव, ज्ञान)।  - पूरकता उपयोगिता विधि से प्रकटन इसी धरती पर।
अवस्था भेद - चारों अवस्था में निश्चित पहचान मौलिक पहचान और प्रयोजन।
अवस्था चतुष्टय - पदार्थावस्था, प्राणावस्था, जीवावस्था, ज्ञानावस्था (मनुष्य)।
अवस्थिति       -  परम्परा के रूप में स्पष्ट।
अर्वाचीन         - प्राचीन से पहले।
अविकसित सृष्टि -   पदार्थावस्था प्राणावस्था का संयुक्तप्रकाशन ही अविकसित सृष्टि है। (रासायनिक भौतिक संसार)
अविद्या            - भ्रमात्मक दर्शन विचार शास्त्र परिकल्पना कार्य व्यवहार।
- जैसा जिसका रूप-गुण-स्वभाग-धर्म या स्थिति व गति है, उसको उसी प्रकार समझने की अक्षमता।
अविनाशिता - शाश्वत रहना, होना, नित्य वर्तमान। - व्यापक वस्तु जड़-चैतन्य वस्तु में पारगामी परस्परता में पारदर्शी सहज वैभव होने के रूप में स्पष्ट।
                        - चैतन्य इकाई, गठनपूर्ण परमाणु, अणु बंधन भार बंधन से मुक्त, आशाबंधन से युक्त, जागृतिपूर्वक आशाबंधन से मुक्ति होने की स्पष्टता।   - सहअस्तित्व।
                        अविभाज्य   - अलग-अलग न होना, साथ में होना  -  व्यापक वस्तु में जड़-चैतन्य संयुक्तहै। चैतन्य इकाई में से कोई अंश अलग  - विस्थापित-प्रस्थापित  
                        नहीं है। गठनपूर्णता सहज निरंतरता है। जीवन अमर है, व्यापक सत्ता है।

अविरत           - सदा-सदा वर्तमान।
अविदित          - विकासक्रम विकास  -  जागृतिक्रम जागृति सहअस्तित्व वैभव है। इसके विपरीत क्रिया कलाप जो मानव ही भ्रमवश करता है यही अविदित है।
अविश्वास        - न्याय के प्रति संदिग्धता, छल, कपट, दंभ, पाखण्ड।
अवैध               - अमानवीयता पूर्ण क्रिया कलाप।
अशान्ति          - समस्या ग्रस्त मानसिकता।
अशेष              - सपूर्ण (सत्ता में संपृक्त प्रकृति)।
अस्तित्व          - व्यापक सत्ता में संपृक्त जड़-चैतन्य प्रकृति रूपी अनंत इकाईयों सहज वैभव।
                        - ''जो है'' जिसके होने को स्पष्ट व प्रमाण रूप में समझने का प्रयास आदिकाल से ही मानव करता रहा।
                        - ''होना'' त्व सहित होना। होने के आधार पर सभी वस्तुओं का अध्ययन, सूत्र, व्याख्या व विश्लेषण पूर्वक स्पष्ट होना। भौतिक  
-  रासायनिक वस्तु के रूप में परिणामशील, यथास्थिति परम्परा में उपयोगिता  
-  पूरकता विधि से त्व सहित व्यवस्था है। विकास क्रम, विकास सहज जागृति क्रम जागृति सहज स्थितियों में स्थित इकाईयाँ अपने त्व सहित व्यवस्था व समग्र व्यवस्था में भागीदारी करने के रूप में है।
अस्तित्व दर्शन - सर्वत्र सदा सदा विद्यमान, पारगामी पारदर्शी व्यापक वस्तु में भीगे, डूबे, घिरे जड़-चैतन्य रूपी प्रकृति चार अवस्था में धरती पर है, इसके रूप गुण  
                        स्वभाव धर्म सहज त्व सहित व्यवस्था।  

-  समग्र व्यवस्था में भागीदारी है। यही अस्तित्व, अनुभव में प्रमाण, अनुभव सहज तद्रूप विधि से मानसिकता होना पाया जाता है।
अस्तित्व धर्म - विकास क्रम विकास, जागृति क्रम जागृति सहज स्थितियों में स्थित इकाईयाँ अपने त्व सहित व्यवस्था समग्र व्यवस्था में भागीदारी करने के रूप में है।
अस्तित्व मूलक - होने के आधार पर सभी वस्तुओं का मानव अपने ज्ञान विवेक विज्ञान से अध्ययन करता है। मानव ही ज्ञानावस्था सहज वैभव है यही मानव कुल में 
                        जागृत जीवन दृष्टा पद प्रतिष्ठा सहज सूत्र है, होने के आधार पर जीने देने व जीने के आधार पर सोचना समझना करना फल परिणाम समझ के अनुरूप होना।

अस्तित्ववादी- होने देने और होने के हर मुद्दे पर सूत्र व्याख्या विश्लेषण पूर्वक स्पष्ट होना।
अस्तित्वशील- भौतिक, रासायनिक जीवन क्रिया एं परिणामशील यथास्थिति परम्परा में उपयोगिता पूरकता विधि से विकसित व्यवस्था है।
                        - विकासक्रम, विकास, जागृतिक्रम, जागृति में क्रिया शील प्रकृति।
अस्तित्व पूर्ण - सर्वत्र, सर्वदा, व्यापक में अनंत इकाईयों की स्थिति।
अस्तित्व सहज - नित्य वर्तमान होने के रूप में वर्तमान।
अस्तित्व में अखण्डता -   सहअस्तित्व।
अस्तित्व सर्वस्व - होने के रूप में, व्यापक वस्तु में समाहित जड़-चैतन्य प्रकृति, व्यापक वस्तु रूपी सत्ता में संपृक्त जड़-चैतन्य प्रकृति, सत्ता में भीगा डूबा घिरा हुआ जड़-
                        चैतन्य प्रकृति अस्तित्व ही सह अस्तित्व, सहअस्तित्व ही चार अवस्था पदों में गण्य है। सह अस्तित्व में ही मानव मनाकार को साकार करने वाला मनः 
                        स्वस्थता सहज प्रमाण ही जागृति है। अस्तित्व स्थिर व विकास एवं जागृति निश्चित है।

अस्थिर            - मानव भ्रमवश अधिकतम अनिश्चयता से पीडि़त।
अस्तु    - इसलिए।
असंग्रह            - समृद्धि सहज प्रमाण यही असंग्रह वैभव।
असंतुलन         - समस्याओं की पीड़ा, भ्रमित मानव ही अमानवीयता वश असंतुलित और असंतुलनकारी, भ्रमवश मानसिकता में किया गया कार्य  -  व्यवहार अव्यवस्था है।
असंतुलित   - भ्रमवश ही संस्कृति सभ्यता विधि व्यवस्था में असंतुलन, मनुष्य समस्या ग्रस्त है।
असंतोष           - संग्रह सुविधावादी मानसिकता।
असत्य              - न्याय, धर्म, सत्य विरोधी मानसिकता।
असत्य ज्ञान    - अस्तित्व व अस्तित्व में जो जैसा है उसे उससे भिन्न मानना। - भ्रमित मानसिकता का प्रकाशन।
असफल           - विकास क्रम, विकास, जागृति क्रम, जागृति विरोधी मानसिकता प्रवृत्ति से किया गया सभी कार्य  -  व्यवहार असफल।
असमंजस   - निर्णय निश्चय समाधान नहीं हो पाने, समस्याओं से परेशानी।
असमर्थ            - नासमझी।
असाध्य           - नियति विरोधी कार्य  -  व्यवहार, विचार से समाधान होने में असाध्य।
असार्थक          - भ्रमात्मक मानसिकता।
असार्थकता      - गलती व अपराध का परिणाम।
असार्थकता का विकल्प -   सार्थकता, ज्ञान, विवेक, विज्ञान।       
असीमित         - व्यापक वस्तु, सत्ता। ज्ञान परम्परा के रूप में प्रवाहित होती है उसे सीमा में नहीं बांधा जा सकता है।
अस्वागतीय     - न स्वीकारने योग्य।
अस्वाभाविकता - चार अवस्थाओं का स्वभाव निश्चित है। भ्रम में मानव मानवीय स्वभाव से भिन्न मूल्यों का अनुकरण प्रकाशन क्रिया ।
अस्मिता          - अहंकार। स्वयं को श्रेष्ठ अन्य को नेष्ठ मानना, स्वयं के रूप, बल, धन, पद के प्रति अधिमूल्यन दोष ही अहंकार।
अर्हता              - जागृति पूर्वक दृष्टा पद, जागृति सहज प्रमाण सम्पन्नता।
अर्ह                  - जागृति पूर्वक दृष्टा पद में प्रमाणित होने योग्य।
अहंकार           - आत्मानुभूति में अक्षम बुद्धि अथवा भ्रमित विचार।
अहमता           - अहंकार, भ्रमित मानसिकता।
अहित              - स्वास्थ्यवर्धन व संरक्षण में विघ्न, संकट, शोषण, रोग।
अक्षय महिमा - सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व में जागृत जीवन।
अक्षय शक्तियाँ - चयन विश्लेषण चित्रण संकल्प व अनुभव प्रमाण सम्पन्न जागृत जीवन शक्ति वर्तमान
अक्षय बल      - मूल्यों का आस्वादन, न्याय धर्म सत्य सहज तुलन, साक्षात्कार व बोध, अस्तित्व में बोध व अनुभव ही अक्षय बल है।
अक्षयशील       - जीवन, जीवन शक्तियाँ व बल अक्षयशील है।   - जीवन में अक्षय बल का क्षरण नहीं होता। सहअस्तित्व में प्रत्येक इकाई बल सम्पन्नता से मुक्त नहीं है।
अक्षय               - क्रिया  व कार्य के अनन्तर और क्रिया-कर्म के लिए अर्हताओं का एक सा बने रहना। सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व समग्र ही सत्ता में सपृक्त जड़-चैतन्य प्रकृति 
                        है। चैतन्य प्रकृति पूर्ण बल-शक्ति ही अक्षय-बल-शक्ति है।   - पूर्ण व पूर्णता अक्षय है। अन्तर्नियोजित बल-शक्ति  का प्रक्रियाबद्ध होकर फल परिणाम अवधि में 
                        जागृति सहज प्रमाण है। गठन पूर्ण परमाणु में अपरिणामिता है। अक्षय बल शक्ति  की स्थिति है।  - शून्याकर्षण में पृथ्वी सहज स्थिति गति अक्षय है। -
                        विकास और विकास क्रम में आवर्तनशील नियम अक्षय है। -संबंधों के निर्वाह में न्यायपूर्ण व्यवहार अक्षय है। - जागृति में आचरणपूर्णता सजगता अक्षय है।

अमर मोक्ष     - सालोक्य, सामीप्य, सायुज्य तथा सारूपय का संयुक्तस्वरूप ही जागृति है। जागृति का तात्पर्य क्रिया पूर्णता, आचरणपूर्णता, अनुभव प्रमाण और सर्वतोमुखी 
            समाधान रूप में। (भ्रम मुक्ति)

अक्षुण्णता        - निरंतरता।
अज्ञान             - अतिव्याप्ति, अनाव्याप्ति, अव्याप्ति।
अज्ञानता         - अस्तित्व दर्शन ज्ञान, जीवन ज्ञान, मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान में वंचित रहना।
अक्षुण्णतारत  - अस्तित्व में जागृत जीवन, सहअस्तित्व सहज प्रमाण धरती परम्परा अखण्डता सार्वभौमता के अर्थ में जीवन व जीवन जागृति प्रमाण मानव परम्परायें 
              किसी धरती पर ही होता है।

अज्ञानवश   - भ्रमवश समस्या, क्लेश, दुःख, अव्यवस्था।
अज्ञानी            - भ्रमित मानव।
अर्थभेद            - आवश्यकता के अनुसार/आधार पर उत्पादन।
अधिभौतिक - भौतिक क्रिया कलाप का आधार। (व्यापक वस्तु) (साम्य ऊर्जा)
अधिदैविक  - देवताओं का त्राण प्राण, देवताओं का आधार। (देव चेतना सम्पन्न परम्परा)
अद्वैत  - शंका, संदिग्धता, संशय विहीन = प्रामाणिकता प्रमाण, सर्वतोमुखी समाधान पूर्ण संचेतना।
अवस्था            - विकास के क्रम में आश्वस्त होने में, से, के लिए इकाई की स्थिति, अनुभव के प्रकाश में समाने वाली क्रिया  = अनुभूति। (चार अवस्था)