अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित
चिंतन
सहज मध्यस्थ दर्शन (सहअस्तित्ववाद)
परिभाषा संहिता
अस्तित्व
मूलक मानव केन्द्रित चिंतन सहज मध्यस्थ दर्शन (सहअस्तित्ववाद)
परिभाषा
संहिता
प्राक्कथन
मैं इस परिभाषा
संहिता को सपूर्ण मानव के समुख प्रस्तुत करते हुए परम प्रसन्नता का अनुभव करता हूँ।
साथ में यह भी सत्यापित कर रहा हूँ कि सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व में गठनपूर्ण परमाणु
के रूप में जीवन का अध्ययन किया हूँ जिसमें आशा, विचार, इच्छा का प्रकटन मानव परम्परा
में हो चुका है। जीव परम्परा में जीने की आशा रूप प्रकट हो चुकी है। सहअस्तित्व रूपी
अस्तित्व में अस्तित्व दर्शन, जीवन ज्ञान के संयुक्त रूप में मानवीयतापूर्ण आचरण ज्ञान
ध्रुवीकृतहोना रहना का सपूर्ण आयाम दिशा, कोण, परिप्रेक्ष्यों में वर्चस्वी, सकारात्मक,
फल परिणाम को प्रस्तुत करने योग्य अध्ययन किया हूँ। यह अध्ययन विधिवत होने पर विश्वास
करना मेरा कर्तव्य हो गया है कि यह केवल मेरा ही समाधान नहीं है अपितु सपूर्ण मानव
जाति के लिए समाधान है। इसे प्रस्तुत करते समय सोच - विचार
से शब्द, शब्द से वाक्य, वाक्य से प्रयोजन इन तीन मुद्दों के आशय को परिभाषा द्वारा
मानव समुख प्रस्तुत किया हूँ। इसे अध्ययन करते हुए मानव अपने मंतव्य को व्यक्त कर सकता
है।
इस प्रस्तुति में
भाषा अर्थात् शब्द परम्परागत है परिभाषा मेरे द्वारा दिया गया है। परिभाषा परम्परा
का नहीं है। इस विधि से इसे एक विकल्पात्मक रूप में हर मानव अपने में अनुभव कर सकता
है। जिससे ही सर्वशुभ होने की सपूर्ण संभावना है।
ए. नागराज
प्रणेता : मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्ववाद
अमरकंटक (म.प्र.) 11 - 09 - 2008
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